Most preachers self / proclaimed Baba / religious teachers give
sermons on Kaam, Krodh, Lobh, Moh and Ahankaar. One wonders if they
really know meaningful meanings of these terms. According to Vedic
concepts; following are symptoms and definitions of these terms:-
काम का लक्षण:-
स्त्रीषु जातो मनुष्याणां स्त्रीणां च पुरुषेषु वा।
परस्पर कृतःस्नेह काम इत्यभिषीयते॥
स्त्रियों में पुरुषों का और पुरुषों में स्त्रियों का जो पारस्परिक स्नेह आदान – प्रदान होता है; उसे काम कहा जाता है।
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क्रोध का लक्षण:-
यदूष्मा ह्रदयाज्जन्तोः समुत्तिष्ठति वै सकृत्।
परहिंसात्मकः क्लेशः क्रोध इत्यभिषीयते॥
दूसरे के लिए हिंसात्मक प्रवृति, प्राणियों के ह्रदय से जो क्लेशात्मक ऊष्णता सहसा उठ खड़ी होती है उसे क्रोध कहा जाता है।
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लोभ का लक्षण:-
परार्थं परभोगांश्च पर सामर्थ्यमेव च।
दृष्ट्वाश्रुत्वा या तृष्णा जायते लोभ एव सः॥
दूसरे की धन-राशि, वैभव एवं शक्ति को देख-सुन कर जो उपलब्धि-लिप्सा उद्भव होती है उसे लोभ कहा जाता है।
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मोह का लक्षण:-
अश्रेयःश्रेयसोर्मध्ये भ्रमणं संशयो भवेत्।
मिथ्याग्यानं तु तं प्राहुरहिते हित दर्शनम्॥
अशुभ परिणामों में शुभ और शुभ परिणामों में अशुभ रुप भ्रम एवं संशय उत्पन्न होते रहते हैं; उसे मोह कहा जाता है।
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अहंकार के लक्षण:-
अहमित्यभिमानेन यः क्रियासु प्रवर्तते।
कार्यकारणयुक्तस्तु तदहंकार लक्षणम्॥
कार्य कारण भावों से युक्त व्यक्ति “अहमस्मि” अर्थात जो कुछ भी हूं; वह मैं हूं इस प्रकार की अभिभानात्मक मनोवृति से सम्प्रेरित जो कार्य करता है उसे अहंकार कहा जाता है।
काम का लक्षण:-
स्त्रीषु जातो मनुष्याणां स्त्रीणां च पुरुषेषु वा।
परस्पर कृतःस्नेह काम इत्यभिषीयते॥
स्त्रियों में पुरुषों का और पुरुषों में स्त्रियों का जो पारस्परिक स्नेह आदान – प्रदान होता है; उसे काम कहा जाता है।
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क्रोध का लक्षण:-
यदूष्मा ह्रदयाज्जन्तोः समुत्तिष्ठति वै सकृत्।
परहिंसात्मकः क्लेशः क्रोध इत्यभिषीयते॥
दूसरे के लिए हिंसात्मक प्रवृति, प्राणियों के ह्रदय से जो क्लेशात्मक ऊष्णता सहसा उठ खड़ी होती है उसे क्रोध कहा जाता है।
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लोभ का लक्षण:-
परार्थं परभोगांश्च पर सामर्थ्यमेव च।
दृष्ट्वाश्रुत्वा या तृष्णा जायते लोभ एव सः॥
दूसरे की धन-राशि, वैभव एवं शक्ति को देख-सुन कर जो उपलब्धि-लिप्सा उद्भव होती है उसे लोभ कहा जाता है।
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मोह का लक्षण:-
अश्रेयःश्रेयसोर्मध्ये भ्रमणं संशयो भवेत्।
मिथ्याग्यानं तु तं प्राहुरहिते हित दर्शनम्॥
अशुभ परिणामों में शुभ और शुभ परिणामों में अशुभ रुप भ्रम एवं संशय उत्पन्न होते रहते हैं; उसे मोह कहा जाता है।
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अहंकार के लक्षण:-
अहमित्यभिमानेन यः क्रियासु प्रवर्तते।
कार्यकारणयुक्तस्तु तदहंकार लक्षणम्॥
कार्य कारण भावों से युक्त व्यक्ति “अहमस्मि” अर्थात जो कुछ भी हूं; वह मैं हूं इस प्रकार की अभिभानात्मक मनोवृति से सम्प्रेरित जो कार्य करता है उसे अहंकार कहा जाता है।
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