आप वैदिक सूक्तो के द्वारा ये मान चुके है की जितने भी ऋग्वेद में वर्णित
देव या देवी है वो एक ही इस्वर के रूप है । तो आपको ये भी मानना पड़ेगा की
इस्वर के रूप है । क्युकी मैं ऋग्वेद के मन्त्र के द्वारा ही आपको उनके रूप
का वर्णन दिखता हु । आप ऋग्वेद में जरुर मिला लेना । ताकि आप ये न कह सके
की गलत है । और हा स्वामी दयानंद की नहीं मूल वेद से मिलोयेगा ।
प्रथम मंडल सूक्त ३ का एक श्लोक
२४. इन्द्रा याहि तूतुजान उप ब्रम्हाणि हरिव: । सुते दधिष्व नश्चन:॥६ ॥
हे अश्वयुक्त इन्द्रदेव ! आप स्तवनो के श्रवणार्थ एवं इस यज्ञ मे हमारे द्वारा प्रदत्त हवियो का सेवन करने के लिये यज्ञशाला मे शीघ्र ही पधारें ॥६॥
यहाँ पर इंद्र देव को अश्व युक्त बताया गया है । तो क्या निराकार इस्वर घोड़ो पर विराजमान हो सकता है ।
प्रथम मंडल सूक्त ४ का ये श्लोक देखे
३८. अस्य पीत्वा शतक्रतो घनो वृत्राणामभव:। प्रावो वाजेषु वाजिनम्॥८॥हे सैकड़ो यज्ञ सम्पन्न करने वाले इन्द्रदेव! इस सोमरस को पीकर आप वृत्र-प्रमुख शत्रुओ केसंहारक सिद्ध हुये है,अत: आप संग्राम-भूमि मे वीर योद्दाओ कीरक्षा करे॥८॥
यहाँ पर इंद देव को वृतासुर का संहारक बताया गया है । तो क्या कोई निर्गुण इस्वर सगुण वृतासुर को मार सकता है ?
इस श्लोक में तो इंद्र देव को घोड़े सहित रथ का भी वर्णन है -
४४. यस्यं स्ंस्थे न वृण्व्ते हरी समत्सु शत्रव:। तस्मा इन्द्राय गायत॥४॥(हे याजको!) संग्राम मे जिनके अश्वो से युक्त रथो के सम्मुख शत्रु टिक नही सकते, उन इन्द्रदेव के गुणो का आप गान करे॥४॥
तो क्या निराकार इस्वर रथ पर बैठ कर शत्रुओ को मार सकता है ?
४६. त्वं सुतस्य पीतवे सद्यो वृद्धो अजायथा:। इन्द्र ज्यैष्ठय्याय सुक्रतो॥६॥हे उत्तम कर्म वाले इन्द्रदेव! आप सोमरस पीने के लिये देवताओ मे सर्वश्रेष्ठ होने के लीये तत्काल वृद्ध रूप हो जाते है॥६॥
उपर के श्लोक में भगवन इन्द सोमरस पिने के लिए वृद्ध रूप हो जाते है । तो क्या किसी निराकार इश्वर का रूप हो सकता है ?
प्रथम मंडल सूक्त ६
५२.युञ्जन्त्यस्य काम्या हरी विपक्षसा रथे।शोणा धृष्णू नृवाहसा॥२॥इन्द्रदेव के रथ मे दोनो ओर रक्तवर्ण, संघर्षशील, मनुष्यो को गति देने वाले दो घोड़े नियोजित् रहते है ॥२॥
लीजिये अब तो यहाँ पर साफ साफ है की इंद्र देव के रथ में दो घोड़े रहते है । तो अगर इस्वर निराकार हैं तो उस प्यारे इस्वर को रथ की क्या आवश्यकता ।
अभी तक मैंने मात्र छः सूक्त पढ़कर इस्वर के साकार होने के इतना प्रमाण दिया । आगे पढूंगा तो पता नही की कितना प्रमाण मिलेगा । आप अब कहेंगे की ये तो देवताओ के आकार का वर्णन है इस्वर का नहीं । तो मैं आप को यहाँ पर दो बात कहना चाहूँगा ।
पहला की देवताओ का है ना वर्णन तो आप सब आर्य समाज के लोग देवताओ की पूजा , मूर्ति पूजा का क्यों विरोध करते है । वेदों में तो ये कहा गया है की इस्वर निराकार है ये नही कहा गया है की मूर्ति पूजा मत करो । मूर्ति पूजा का कही भी वेदों में विरोध नही है । और मैं तो पहले की कह चूका हु की वेदों में ये कहा गया है की इस्वर का कोई रूप नही हैं , लेकिन वेदों में इस्वर के रूप का वर्णन है ।
दूसरी बात की इस्वर का साकार रूप का स्पष्ट वर्णन ऋग्वेद के दसमे मंडल के पुरुष सूक्त में है । ये तो आप सब जानते ही होंगे । उसमे तो साफ साफ कहा गया है की इस्वर के मुख से ब्राह्मण , भुजाओ से क्षत्रिये , जांघो से वैश्य और चरणों से शुद्र उत्पन्न हुए है । अर्थात इस्वर के मुख , भुजा , जांघ और पैर है तो इस्वर के रूप है ।
मैं तो आप सब से यही कहना चाहूँगा की आप निराकार इस्वर को अवश्य माने लेकिन मूर्ति पूजा का विरोध बिलकुल ना करे । आप सब सिर्फ दयानंद की पुस्तक ना पढ़े बल्कि मूल वेदों को भी पढ़े ।
भारत की प्रगति का सबसे बड़ा एक बाधा ये है की हम सब हिन्दू और आर्य में बटे हुए है । अतः आप सब से मेरी प्रार्थना है की आर्य और हिन्दू अपने अपने कुंठित विचारो को त्याग कर एक हो ।
इसी में देश की भलाई है ।
Courtesy: Prabhar Kumar
प्रथम मंडल सूक्त ३ का एक श्लोक
२४. इन्द्रा याहि तूतुजान उप ब्रम्हाणि हरिव: । सुते दधिष्व नश्चन:॥६ ॥
हे अश्वयुक्त इन्द्रदेव ! आप स्तवनो के श्रवणार्थ एवं इस यज्ञ मे हमारे द्वारा प्रदत्त हवियो का सेवन करने के लिये यज्ञशाला मे शीघ्र ही पधारें ॥६॥
यहाँ पर इंद्र देव को अश्व युक्त बताया गया है । तो क्या निराकार इस्वर घोड़ो पर विराजमान हो सकता है ।
प्रथम मंडल सूक्त ४ का ये श्लोक देखे
३८. अस्य पीत्वा शतक्रतो घनो वृत्राणामभव:। प्रावो वाजेषु वाजिनम्॥८॥हे सैकड़ो यज्ञ सम्पन्न करने वाले इन्द्रदेव! इस सोमरस को पीकर आप वृत्र-प्रमुख शत्रुओ केसंहारक सिद्ध हुये है,अत: आप संग्राम-भूमि मे वीर योद्दाओ कीरक्षा करे॥८॥
यहाँ पर इंद देव को वृतासुर का संहारक बताया गया है । तो क्या कोई निर्गुण इस्वर सगुण वृतासुर को मार सकता है ?
इस श्लोक में तो इंद्र देव को घोड़े सहित रथ का भी वर्णन है -
४४. यस्यं स्ंस्थे न वृण्व्ते हरी समत्सु शत्रव:। तस्मा इन्द्राय गायत॥४॥(हे याजको!) संग्राम मे जिनके अश्वो से युक्त रथो के सम्मुख शत्रु टिक नही सकते, उन इन्द्रदेव के गुणो का आप गान करे॥४॥
तो क्या निराकार इस्वर रथ पर बैठ कर शत्रुओ को मार सकता है ?
४६. त्वं सुतस्य पीतवे सद्यो वृद्धो अजायथा:। इन्द्र ज्यैष्ठय्याय सुक्रतो॥६॥हे उत्तम कर्म वाले इन्द्रदेव! आप सोमरस पीने के लिये देवताओ मे सर्वश्रेष्ठ होने के लीये तत्काल वृद्ध रूप हो जाते है॥६॥
उपर के श्लोक में भगवन इन्द सोमरस पिने के लिए वृद्ध रूप हो जाते है । तो क्या किसी निराकार इश्वर का रूप हो सकता है ?
प्रथम मंडल सूक्त ६
५२.युञ्जन्त्यस्य काम्या हरी विपक्षसा रथे।शोणा धृष्णू नृवाहसा॥२॥इन्द्रदेव के रथ मे दोनो ओर रक्तवर्ण, संघर्षशील, मनुष्यो को गति देने वाले दो घोड़े नियोजित् रहते है ॥२॥
लीजिये अब तो यहाँ पर साफ साफ है की इंद्र देव के रथ में दो घोड़े रहते है । तो अगर इस्वर निराकार हैं तो उस प्यारे इस्वर को रथ की क्या आवश्यकता ।
अभी तक मैंने मात्र छः सूक्त पढ़कर इस्वर के साकार होने के इतना प्रमाण दिया । आगे पढूंगा तो पता नही की कितना प्रमाण मिलेगा । आप अब कहेंगे की ये तो देवताओ के आकार का वर्णन है इस्वर का नहीं । तो मैं आप को यहाँ पर दो बात कहना चाहूँगा ।
पहला की देवताओ का है ना वर्णन तो आप सब आर्य समाज के लोग देवताओ की पूजा , मूर्ति पूजा का क्यों विरोध करते है । वेदों में तो ये कहा गया है की इस्वर निराकार है ये नही कहा गया है की मूर्ति पूजा मत करो । मूर्ति पूजा का कही भी वेदों में विरोध नही है । और मैं तो पहले की कह चूका हु की वेदों में ये कहा गया है की इस्वर का कोई रूप नही हैं , लेकिन वेदों में इस्वर के रूप का वर्णन है ।
दूसरी बात की इस्वर का साकार रूप का स्पष्ट वर्णन ऋग्वेद के दसमे मंडल के पुरुष सूक्त में है । ये तो आप सब जानते ही होंगे । उसमे तो साफ साफ कहा गया है की इस्वर के मुख से ब्राह्मण , भुजाओ से क्षत्रिये , जांघो से वैश्य और चरणों से शुद्र उत्पन्न हुए है । अर्थात इस्वर के मुख , भुजा , जांघ और पैर है तो इस्वर के रूप है ।
मैं तो आप सब से यही कहना चाहूँगा की आप निराकार इस्वर को अवश्य माने लेकिन मूर्ति पूजा का विरोध बिलकुल ना करे । आप सब सिर्फ दयानंद की पुस्तक ना पढ़े बल्कि मूल वेदों को भी पढ़े ।
भारत की प्रगति का सबसे बड़ा एक बाधा ये है की हम सब हिन्दू और आर्य में बटे हुए है । अतः आप सब से मेरी प्रार्थना है की आर्य और हिन्दू अपने अपने कुंठित विचारो को त्याग कर एक हो ।
इसी में देश की भलाई है ।
Courtesy: Prabhar Kumar
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